शनि पर्वत का मूल स्थान मध्यमा अंगुली के मूल में स्थित होता है, हथेली में इसका उभरापन असाधारण प्रवृतियों का सूचक है, इसके स्वाभाविक गुण एकांतप्रियता, तांत्रिक या गुप्त विद्याओ में रूचि, गंभीर, संगीतप्रिय, दुखांत साहित्य, दुखांत संगीत, जासूसी साहित्य पढ़ना आदि है,
हथेली में इस पर्वत का न होना असफलता का सूचक है,क्योकि मध्यमा अंगुली भाग्य की सूचक है भाग्य रेखा इस पर्वत पर आकर समाप्त होती है इस कारण से शनि पर्वत का विशेष महत्व है, यदि शनि पर्वत पूरी हथेली में सबसे अधिक उभार लिए है तो वह व्यक्ति प्रबल भाग्यवादी होगा .
यदि शनि पर्वत उभार लिए हुये है और किसी भी पर्वत की ओर झुका हुआ नहीं है तो ऐसा व्यक्ति एकांतप्रिय होता है, वह व्यक्ति लक्ष्य-प्राप्ति में लीन रहता है उसे समाज व घर की चिंता नहीं रहती , यहाँ तक कि वह घर में स्त्री व बच्चो तक कि चिंता नहीं करता.
अत्यंत विकसित शनि मानव को विद्रोही बना देता है, शनि क्षेत्र यदि बिगड़ा है तो उसके शरीर में दाँत-कान की बीमारी, वातरोग, गठिया, दुर्घटना तथा श्वास का रोग भी होता है, यदि एक बार बीमारी आ गयी तो जल्दी नहीं जाती है, शनि प्रधान व्यक्तियों का रंग साधारणतया पीला होता है, हथेली पीली रहती है, इकहरे बदन के लंबे व्यक्ति होते है, स्वभाव से उदास एवं निराशावादी होते है, शनि पर्वत का झुकाव यदि गुरु पर्वत की ओर है तो वह व्यक्ति समाज में श्रेष्ठ जीवन-यापन करता है और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करता है.
यदि शनि पर्वत का झुकाव सूर्य की ओर है तो वह व्यक्ति निष्किय जीवन जीता है, प्रत्येक क्षेत्र में असफलताएं उसे निराशावादी बना देती है, ऐसे व्यक्ति भाग्य के सहारे बैठे रहते है और निर्धनता का जीवन जीते है, ऐसे व्यक्तियो की पिता से नहीं पटती है, यदि शनि पर्वत अपने स्थान से हटकर सूर्य से मिल जाये तो वह व्यक्ति निःसन्देह आत्महत्या कर लेता है, यदि शनि पर्वत पर अनेक रेखाएँ हैं तो व्यक्ति वह भीरु और कामुक होता है, बुध पर्वत के समान यदि शनि पर्वत उभार लिए हुए है तो वह व्यक्ति व्यापार या चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष उन्नति करता है, शनि पर्वत का निर्दोष त्रिभुज है तो वह तांत्रिक होता है, यदि त्रिभुज सदोष है तो वह परले सिरे का ठग होता है.
शनि पर्वत
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July 13, 2012
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