गृह निर्माण के समय दिशाओं का अपना एक विशेष महत्व है , दिशाओं को 4 भागों में बांटा गया है ,दिशाओं के साथ - साथ 4 कोण भी मने गए है इन सबका असर भवन एवं भवन में निवास करने वाले सभी सदस्यों पर समान रूप से पड़ता है .यहाँ हम सबसे पहले बात करेंगे दिशाओं और उनके महत्व की .
हिंदू धर्म के अनुसार दिशाओं को हम 4 भागों में विभाजित करते है
पूरब दिशा
पश्चिम दिशा
उत्तर दिशा
दक्षिण दिशा
दिशाओं को हम 4 कोण में विभाजित करते है
ईशान कोण ( पूर्व एवं उत्तर की दिशा का कोना )
वायव्य कोण (उत्तर एवं पश्चिम की दिशा का कोना )
नैरत्य कोण (पश्चिम एवं दक्षिण की दिशा का कोना )
आग्नेय कोण (दक्षिण एवं पूर्व की दिशा का कोना )
अब आइये जानते है की इन दिशाओं से हमारे जीवन पर क्या - क्या प्रभाव हो सकते हैं
पूरब दिशा - वास्तु शास्त्र में इस दिशा को बहुत ही महत्व पूर्ण माना गया है ,यह सूर्य के उदय होने की दिशा है एवं इस दिशा के स्वामी देवों के राजा इन्द्र हैं .भवन बनाते समय जहाँ तक हो सके इस दिशा को अधिक खुला रखना चाहिए ,यह सुख एवं समृद्धि का घोतक है .
पश्चिम दिशा - पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं , भवन निर्माण के समय इस दिशा को खाली नहीं छोड़ना चाहिए ,भारी निर्माण इस दिशा में बेहद शुभ माना जाता है इस दिशा में दोष होने पर गृहस्थ जीवन में सुख की कमी,कारोबार में साझेदारों से अनबन ,एवं गृह स्वामी के मान सम्मान में कमी आदि दोष होते हैं.
उत्तर दिशा - इस दिशा के स्वामी कुबेर जी हैं , वास्तु विज्ञानं के अनुसार पूर्व दिशा की भांति इस दिशा को भी रिक्त एवं भार हीन रखना चाहिए. कुबेर की दिशा होने से इस दिशा का महत्व बढ़ जाता है .इस दिशा में अलमारी , लाकर आदि की स्थापना की जाती है उत्तर की दिशा में आप आनाज का भण्डारण ,सयन कक्ष आदि निर्माण करवा सकते है .इस दिशा में दोष होने से आर्थिक विपन्नता का सामना करना पड़ सकता है .
हिंदू धर्म के अनुसार दिशाओं को हम 4 भागों में विभाजित करते है
पूरब दिशा
पश्चिम दिशा
उत्तर दिशा
दक्षिण दिशा
दिशाओं को हम 4 कोण में विभाजित करते है
ईशान कोण ( पूर्व एवं उत्तर की दिशा का कोना )
वायव्य कोण (उत्तर एवं पश्चिम की दिशा का कोना )
नैरत्य कोण (पश्चिम एवं दक्षिण की दिशा का कोना )
आग्नेय कोण (दक्षिण एवं पूर्व की दिशा का कोना )
अब आइये जानते है की इन दिशाओं से हमारे जीवन पर क्या - क्या प्रभाव हो सकते हैं
पूरब दिशा - वास्तु शास्त्र में इस दिशा को बहुत ही महत्व पूर्ण माना गया है ,यह सूर्य के उदय होने की दिशा है एवं इस दिशा के स्वामी देवों के राजा इन्द्र हैं .भवन बनाते समय जहाँ तक हो सके इस दिशा को अधिक खुला रखना चाहिए ,यह सुख एवं समृद्धि का घोतक है .
पश्चिम दिशा - पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं , भवन निर्माण के समय इस दिशा को खाली नहीं छोड़ना चाहिए ,भारी निर्माण इस दिशा में बेहद शुभ माना जाता है इस दिशा में दोष होने पर गृहस्थ जीवन में सुख की कमी,कारोबार में साझेदारों से अनबन ,एवं गृह स्वामी के मान सम्मान में कमी आदि दोष होते हैं.
उत्तर दिशा - इस दिशा के स्वामी कुबेर जी हैं , वास्तु विज्ञानं के अनुसार पूर्व दिशा की भांति इस दिशा को भी रिक्त एवं भार हीन रखना चाहिए. कुबेर की दिशा होने से इस दिशा का महत्व बढ़ जाता है .इस दिशा में अलमारी , लाकर आदि की स्थापना की जाती है उत्तर की दिशा में आप आनाज का भण्डारण ,सयन कक्ष आदि निर्माण करवा सकते है .इस दिशा में दोष होने से आर्थिक विपन्नता का सामना करना पड़ सकता है .
दक्षिण दिशा - इस दिशा के स्वामी यम देव हैं ,वास्तु शास्त्र में इस दिशा को भी सुख अवं समृधि का दायक माना जाता है ,इस दिशा में दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार की समस्या की सम्भावना होती है , गृह स्वामी की सामाजिक प्रतिष्ठा के हिसाब से इस दिशा का अपना विशेष महत्व है .इस दिशा में यांत्रिक उपकरणों की स्थापना की जाए तो बेहद शुभ होता है , इस दिशा में अग्नि से सम्बंधित, जैसे रसोई घर ,घरेलू यन्त्र आदि के लिए उपयुक्त माना जाता है .
अपनी अगली पोस्ट में मैं आपको दिशाओं के कोणों से होने वाले शुभ - अशुभ फल के बारे में विस्तार से बताऊंगा
वास्तु में दिशाओं का महत्व
Reviewed by Unknown
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February 08, 2012
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